Wednesday 29 April 2015

CCE के हक़ में एक पड़ताल
साल 2010 के पतझर अवकाश में मैंने अपनी  विद्यालय पत्रिका के  लिए लेख लिखा था “ अलविदा बोर्ड परीक्षा ’. लेकिन अब फिर से बोर्ड परीक्षा की पैरवी व वकालत होने लगी है I CCE के  खटे- मीठे अनुभव की सुगबगाहट  अब अहिस्ता-अहिस्ता सुनाई पड़ने लगी हैं I लेकिन अफ़सोस दुनिया के सबसे युवा होने का दम भरने वाले    देश में शिक्षा नीति पर  कभी खुल कर  चर्चा नहीं हो पाती, बहुत कम हमारे समाचार पत्र – पत्रिकाओं में शिक्षा  नीति पर लेख मिलते है ओर  न ही कभी T.V के प्राइम टाइम शो में शिक्षा के मुद्दे  बहश का हिस्सा बनते हैं I जिस आनन – फानन में CCE को लागू किया गया था , उतना जल्दी अब इस पर विरोध के स्वर भी  उठने लगे है I मैं  CCE का बहुत बड़ा समर्थक व प्रंसक हूँ I
                      मैं CCE को दो छोर से देखता हूँ एक प्रगतिवादी व नवाचारी शिक्षक की नजर से दुसरा इककीसवीं शताब्दी के अभिवावक की नजर से I दुर्भाग्यवश CCE जो की मात्र एक मुल्याकन का नया दृष्टिकोण था उसे अन्यथा लिया गया इसके लिए अभिवावक, विद्यालय, शिक्षक  और कुछ हद तक हमारे छात्र, सभी उतरदायी हैं I नीति निधारक की ओर से  जल्दबाजी व मूलभूत -ढांचे में कमी भी CCE को सर्वप्रिय नहीं बना पाया I
                 लेकिन बालक के 365 दिनों के  सर्वांगिण विकाश का मूल्याकन ,घडी की सुई के तीन चक्र भर में, चंद प्रश्नों के रटे- रटाए उतर लिख भर देने से किया जाए ये भी तो कतई सही नहींI कुछ एक सूत्र ,चंद परिभाषाएँ व लेख पत्र लिख लेने से मुझे कदाचित नहीं लगता कि हम अपनी आने वाली पीडी को 2040-50 के लिए तैयार कर रहे हैं I जब कि social मीडिया सब मीडिया पर भारी पड़ता , डाकघर में पत्रों के नाम पर सुखा है ,ग्रीटिंग कार्ड् अब कहाँ हैं ,ईमेल ,SMS व whatsapp अब ज्यादा व्यावहारिक जान पड़ते हैं I हम घडी कि सुइयां को पढना भले ही अपने स्कुलों  में सिखाते रहे पर हकीकत ये है कि अब घड़ियाँ कलाइयों के साथ–साथ समाज से भी लुप्त हो रही हैं और जो इस्तेमाल में है वो सब नंबर्स वाली डिजिटल घड़ियाँ हैं I
 आज कि पीडी स्वयं सोच  कर देखे तो तो उसने कितने त्वरित तकनिकी पतिवर्तन देखे हैं I पिछेले 10 साल में किस  तरह से हमारे जीवन में टेक्नोलॉजी कि घुसपैठ हुई है  वो हमसे छिपा नहीं है चाहे ATM की बात हो, हर हाथ में स्मार्ट फोन हो, ऑनलाइन शौपिंग से लेकर ये फेहरिस्त काफी लम्बी हो जाती हैI यहाँ ये बताना भी मुनासिब होगा कि ये सब हमारी या हमसे पहली वाली पीडी कि देन  है ये पीडी कितना कुछ करेगी उसके बारे में सोचना भी अभी मुश्किल होगा , लेकिन जहाँ से मैं देखता हूँ  और मुझे गर अतिवादी न समझा जाए तो ये आने वाले वर्षों में दुनिया को एक अभूत्पूर्ब परिवर्तन का साक्षी होना पड़ेगा I

                 हम न भूले हमें हमारे बुजुर्गों ने , स्वाभिमान से जीने के लिए एक  स्वंतत्र राष्ट्र सोंफा था  और गुरुवर रविंदर नाथ टेगौर ने लिखा था “